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Polity

Indian Constitution: Key Features and Structure

What makes indian constitution and polity different from the rest of the world
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    The subject matter of part -1 is the nature of Indian Political union and its territory.

    Article 1

    1. (1) India, that is Bharat, shall be a Union of States. [ (2) The States and the territories thereof shall be as specified in the First Schedule ]*. (3) The territory of India shall comprise- (a) the territories of the States; [ (b) the Union territories specified in the First Schedule; and ]** (c) such other territories as may be acquired.

    ——————–* Subs. by the Constitution (Seventh Amendment) Act, 1956, s. 2, for cl. (2)
    ** Subs. by s. 2, ibid., for sub-clause (b)

    Article 1 : Name and Territory of the union

    Article 1.1 : India that is Bharat, shall be a union of states.

    The union will have two names:

    • Bharat: The name by which we know ourselves.
    • India: The name by which the world knows us.

    India will be a Union & NOT federation

    Federation:-

    • In a federation, a country is created out of pre-existing states :-
    • The state identity is larger than the federal identity.
    • The state can break out of a federation.

    Union :-

    • Union is country where states are carved out for :
      • Administrative convenience.
      • To fulfill the aspiration of people.
    • Nation Identity is far bigger than a state identity.

    Article 1.2

    The list of Indian territory can be found in Schedule 1.

    Article 1.3

    The territory of India shall comprise of :-

    • Territory of states
    • Territory of UTs
    • Territory not yet part of union.

    This provision opens the door for future addition to the union.

    Article 2

    Parliament may by law admit into the Union, or establish, new States on such terms and conditions as it thinks fit.

    Article 2: Parliaments Power To Establish & Admit

    The constitution provides two power to the parliament (only parliament) :-

    • Establishment of new states outside the union.
    • Admit it into the union.

    Article 3

    Parliament may by law-(a) form a new State by separation of territory from any State or by uniting two or more States or parts of States or by uniting any territory to a part of any State; (b) increase the area of any State; (c) diminish the area of any State; (d) alter the boundaries of any State; (e) alter the name of any State.

    Article 3: Parliament’s Power to Reorganize

    The Constitution empowers the parliament to make all possible changes to the existing states & UTs of the union. Such as :-

    • Biforecating one state into smaller or multiple
    • Joining smaller state to form a bigger one
    • Changing boundary
    • Changing the name of states
    • Changing States into UTs.

    Article 4(1) (2)

    (1) Any law referred to in article 2 or article 3 shall contain such provisions for the amendment of the First Schedule and the Fourth Schedule as may be necessary to give effect to the provisions of the law and may also contain such supplemental, incidental and consequential provisions (including provisions as to representation in Parliament and in the Legislature or Legislatures of the State or States affected by such law) as Parliament may deem necessary.

    (2) No such law as aforesaid shall be deemed to be an amendment of this Constitution for the purposes of article 368.

    Article 4: Art 2 & 3 can be used easily

    The use of power vested in article 2 and 3 will not be considered an amendment under article 368.
    The presence of article 4 makes the use of article 2 and 3 easier.

    • इस भाग में 4 अनुच्छेद है एवं इसके विषय वस्तु “संघ एवं उसका राज्य क्षेत्र” है l



    अनुच्छेद 1


    1(1) भारत, अर्थात्‌ इंडिया, राज्यों का संघ होगा।

    [ (2) राज्य और उनके राज्यक्षेत्र वे होंगे जो पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं।]*

    (3) भारत के राज्यक्षेत्र में,

          (क) राज्यों के राज्यक्षेत्र,

         [(ख) पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट संघ राज्यक्षेत्र, और]**

           (ग) ऐसे अन्य राज्यक्षेत्र जो अर्जित किए जाएँ, समाविष्ट होंगे।

    —————-

    * संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 2 द्वारा खंड (2) के स्थान पर प्रतिस्थापित।

    ** संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 2 द्वारा उपखंड (ख) के स्थान पर प्रतिस्थापित।


    • व्याख्या

    1.1) ‘भारत’ अर्थात ‘इंडिया’ राज्यों का संघ होगा।

    • संघ का दो नाम होंगे :-
      • भारत : जिससे हम खुद को जानते हैं l
      • इंडिया : जिससे विश्व हमें जानता है l

     

    • भारत एक Union (संघ) है, ना कि Fedration (संघ) :-
      •  Union (संघ):-
        • यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें एक देश प्रशासनिक सुविधा हेतु अपने राज्य क्षेत्र को छोटे-छोटे राज्यों में विभाजित कर देता है l
        • एक Union (संघ) में देश का अस्तित्व राज्यों के अस्तित्व से ज्यादा होता है l
          • उदा.:- India


    • Fedration (संघ) :-
      • यह वैसी व्यवस्था है जिसमें राज्य अपनी मर्जी से आकर देश का निर्माण करते हैं l
      • एक Fedration (संघ) मे राज्यो का अस्तित्व देश के अस्तित्व से ज्यादा होता है l
        • राज्य Fedration (संघ) से बाहर निकल सकते है l 
        • उदा.:-  U.S.A

     

    1.2) भारत के राज्य एवं राज्य क्षेत्र पहली अनुसूची में वर्णित है l

     

    1.3) भारत के राज्य क्षेत्र :-

    • राज्यों का क्षेत्र :- झारखंड, बिहार, पंजाब इत्यादि 
    • संघ शासित प्रदेशों के क्षेत्र
    • वैसे क्षेत्र जो मौजूदा संघ का हिस्सा नहीं है पर भविष्य में हो सकते हैं।

     

    ध्यान दें :- अनुच्छेद  1.3.3 भारत में नए राज्यों के जुड़ने का द्वार खोलता है l

     

    अनुच्छेद 2

    संसद, विधि द्वारा, ऐसे निबंधनों और शर्तों पर, जो वह ठीक समझे, संघ में नए राज्यों का प्रवेश या उनकी स्थापना कर सकेगी।


    • व्याख्या
      • यह अनुच्छेद संसद को (राज्य विधानपालिका को नहीं) दो अधिकार देता है :-
        • नए राज्यों की स्थापना करना, 
          • नए राज्यों की स्थापना वैसे क्षेत्रों में होगी जो संघ का हिस्सा नहीं है l
        • नए राज्य को संघ में प्रवेश करना l



    अनुच्छेद 3

     संसद, विधि द्वारा–

    (क) किसी राज्य में से उसका राज्यक्षेत्र अलग करके अथवा दो या अधिक राज्यों को या राज्यों के भागों को मिलाकर अथवा किसी राज्यक्षेत्र को किसी राज्य के भाग के साथ मिलाकर नए राज्य का निर्माण कर सकेगी;

    (ख) किसी राज्य का क्षेत्र बढ़ा सकेगी;

    (ग) किसी राज्य का क्षेत्र घटा सकेगी;

    (घ) किसी राज्य की सीमाओं में परिवर्तन कर सकेगी;



    • व्याख्या
      • यह संसद को चार अधिकार देता है
    1. संघ का किसी राज्य का क्षेत्र बढ़ा सकना,
    2. संघ के किसी राज्य का क्षेत्र घटा सकना,
    3. किस राज्य की सीमा में परिवर्तन कर सकना तथा
    4. किन्हीं दो राज्यों को मिलाना या एक राज्य से दूसरे राज्य को निकालना l

     

    अनुच्छेद 4

    (1) अनुच्छेद 2 या अनुच्छेद 3 में निर्दिष्ट किसी विधि में पहली अनुसूची और चौथी अनुसूची के संशोधन के लिए ऐसे उपबंध अंतर्विष्ट होंगे जो उस विधि के उपबंधों को प्रभावी करने के लिए आवश्यक हों तथा ऐसे अनुपूरक, आनुषंगिक और पारिणामिक उपबंध भी (जिनके अंतर्गत ऐसी विधि से प्रभावित राज्य या राज्यों के संसद में और विधान-मंडल या विधान-मंडलों में प्रतिनिधित्व के बारे में उपबंध हैं) अंतर्विष्ट हो सकेंगे जिन्हें संसद आवश्यक समझे।

    (2) पूर्वोक्त प्रकार की कोई विधि अनुच्छेद 368 के प्रयोजनों के लिए इस संविधान का संशोधन नहीं समझी जाएगी।


    • व्याख्या
      • संविधान का अनुच्छेद 4 यह स्थापित करता है कि यदि संसद अनुच्छेद 2 तथा 3 में मौजूद शक्तियों का प्रयोग करें तो यह अनुच्छेद 368 का प्रयोग नहीं होगा।
      • अनुच्छेद 4 का होना, अनुच्छेद 2 तथा 3 का प्रयोग सरल बनाता है
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